जितने खेत में चीन का किसान सात टन धान पैदा करता है उतने में हम सिर्फ साढ़े तीन टन पर ही अटक जाते हैं. वजह ये है कि हम वैज्ञानिक तरीके से खेती नहीं करते. खेती में मशीनों के इस्तेमाल और नई चीजों के प्रयोग के मामले में हम कई देशों से बहुत पीछे हैं. अगर हमारे यहां एग्रीकल्चर प्रोडक्टिविटी चीन, अमेरिका के बराबर हो जाए तो किसानों की आय अपने आप ही दोगुनी हो जाएगी.
इनकम डबलिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. अशोक दलवाई कहते हैं कि विकसित देशों की तुलना में भारत में प्रोडक्टिविटी काफी कम है. इसे बढ़ाने की दिशा में सरकार काम कर रही है. दलवाई कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक धान, गेहूं, मक्का, दाल और मूंगफली के उत्पादन में हम विकसित देशों के मुकाबले बहुत पीछे हैं.
फसलों की उत्पादकता मामले में कई देशों से पीछे हैं हमचीन प्रति हेक्टेयर हमसे दोगुना चावल पैदा करता है. जर्मनी हमसे लगभग तीन गुना गेहूं पैदा करता है. अमेरिका भारत से चार गुना मक्का व तीन गुना मूगफली का उत्पादन करता है और कनाडा हमसे तीन गुना अधिक दाल पैदा करता है. इन फसलों में हमारा प्रोडक्शन विश्व औसत से भी कम है.
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक खेती-किसानी पर खतरा जमीन कम होने का नहीं बल्कि वैज्ञानिक विधि से खेती न करने से है. हमारे किसान आधुनिक कृषि अपनाने में हिचकिचाते हैं. एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर साकेत कुशवाहा के मुताबिक “खेती करने के ढर्रे को बदले बिना हम किसानों की आय नहीं बढ़ा सकते. हमारे यहां हर साल बीज बदलने की प्रक्रिया नहीं है. सिर्फ इसी वजह से 20 फीसदी पैदावार कम हो जाती है.”
कुशवाहा के मुताबिक “फसल पैदा करने की विधि और उर्वरक का सही इस्तेमाल न होने से भी प्रोडक्टिविटी कम है. स्वायल टेस्टिंग से लागत पर असर पड़ेगा. लेकिन अभी तक यह भ्रामक है. अधिकारी झूठी रिपोर्ट देते हैं. रिपोर्ट गलत साबित होने पर क्रिमिलनल केस का प्रावधान होना चाहिए. स्वायल टेस्टिंग माइक्रो लेवल पर हो. हर बीघे में हो. अभी सिंचित क्षेत्र में 2.5 और वर्षा सिंचित क्षेत्र में 10 हेक्टेयर के कलस्टर पर टेस्टिंग के लिए एक नमूना उठाया जाता है. मिट्टी, जल, जलवायु, औजार, किसान और बीज…कृषि के मुख्य स्तंभ हैं.”
खाद्यान्न उत्पादन में अभी और काम बाकी है
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एक कृषि वैज्ञानिक ने कहा ‘सिर्फ एमएसपी बढ़ाने से किसानों की किस्मत नहीं बदलेगी. विदेशों में लैंड होल्डिंग हमारे यहां से ज्यादा है. इसलिए वहां मशीन का इस्तेमाल बढ़ा है. बुवाई और कटाई की मशीनों से खेती आसान हो रही है, लेकिन हमारे देश में किसान की परजेच कैपिबिलिटी कम है. कृषि यंत्रों पर टैक्स होना भी किसानों के लिए ठीक नहीं. इसलिए सरकार को मशीन किराये पर देने का इंतजाम करना चाहिए. मार्केट में निराई-गुड़ाई और खर पतवार निकालने वाली मशीनें उपलब्ध हैं. कई कंपनियों ने छोटे किसानों के लिए गेहूं, धान काटने की मशीनें बना ली हैं. लेकिन अभी तक इनका इस्तेमाल न के बराबर है.’
कुल मिलाकर कृषि वैज्ञानिकों का दावा है कि तकनीक और खेती की नई विधियों से ही किसानों की आय बढ़ सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य बनाया है. 9.2 करोड़ किसान परिवारों को साधने के लिए इसे बीजेपी चुनावी मुद्दा बना रही है.
डॉ. अशोक दलवाई का कहना है कि जब कृषि वैज्ञानिक कोई रिसर्च प्रोजेक्ट करते हैं तो वह बहुत अच्छा दिखता है. लेकिन जब वही काम किसान करता है तो उतना असरदार नहीं रह जाता है. इस खाई को पाटना है. इसके लिए वैज्ञानिक समुदाय काम कर रहा है. उधर, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अनिल जैन का कहना है कि आजादी के बाद पहली बार किसी सरकार ने माना है कि किसान प्रॉफिट का भी हकदार है. मोदी सरकार ने फसल लागत पर जो 50 फीसदी लाभकारी मूल्य तय किया है उससे किसानों की स्थिति बदलेगी.
ये है किसानों की आर्थिक स्थिति
वैज्ञानिक खेती से किसानों की आय डबल हो सकती है, बशर्ते नई तकनीक सस्ती हो. सब्सिडी का गोलमाल खत्म हो. मशीनें किराये पर मिलने लगें तो भी किसान उसका उपयोग शुरू कर देंगे.
कम पानी में सिंचाई करने वाली मशीनें
धुरी सिंचाई पद्दति से एक आदमी कई हेक्टेयर जमीन की सिंचाई कर सकता है. बूंद-बूंद पानी का सिंचाई में इस्तेमाल हो जाता है. इससे 150 रुपये में एक हेक्टेयर की सिंचाई हो सकती है. साथ ही बूंद-बूंद सिंचाई मॉडल का भी प्रदर्शन किया गया. जिसमें सिर्फ पौधे के पास ही सिंचाई होती है. मोदी सरकार ने सिंचाई क्षेत्र की लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए 80,000 करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान किया है.
धुरी सिंचाई पद्दति का एक मॉडल
मिट्टी की जांच: चलती-फिरती प्रयोगशाला
केंद्र सरकार ने स्वायल टेस्टिंग पर काफी जोर दिया हुआ है ताकि खाद का वहीं इस्तेमाल हो जहां उसकी जरूरत हो. लेकिन टेस्टिंग न तो आसानी से होती और न ही हर खेत का सैंपल लिया जाता है. किसानों की इस समस्या को हल करने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्वायल साइंस भोपाल ने मिट्टी की जांच के लिए चलती-फिरती प्रयोगशाला बना दी है. लेकिन इसका दाम रखा है 86000 रुपये.
सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 14 करोड़ से अधिक स्वायल हेल्थ कार्ड वितरित किए जा चुके हैं. यूरिया के 100 प्रतिशत नीम लेपन का परिणाम भी उत्पादकता को बढ़ाने, खाद पर खर्च को कम करने के रूप में सामने आया है. दावा है कि स्वायल हेल्थ कार्ड और नीम कोटेड यूरिया के इस्तेमाल से प्रोडक्शन कॉस्ट 8-10 फीसदी कम हुई है.
मिट्टी जांच करने वाली चलती-फिरती प्रयोगशाला
खाद में मिलावट जांचने की किट
केंद्रीय उर्वरक गुण नियंत्रण एवं प्रशिक्षण संस्थान ने उर्वरकों की मिलावट जांचने के लिए एक किट विकसित की है. जैसे-जैसे खादों का इस्तेमाल एवं कीमत बढ़ रही है इसकी गुणवत्ता संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं. किसान खाद खरीदता है लेकिन कई बार वह काम नहीं करती, इसकी बड़ी वजह मिलावट होती है. यूरिया में नमक, सिंगल सुपर फास्फेट में बालू, राख, डीएपी में सिंगल सुपर फास्फेट, पोटाश में ईंट का चूर्ण, कॉपर सल्फेट में बालू और साधारण नमक मिलाकर बेचने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं.
जांच किट से मिलावट का पता चल सकता है. यदि किसी किसान को इस बारे में कोई जानकारी चाहिए तो वह केंद्रीय उर्वरक गुण नियंत्रण एवं प्रशिक्षण संस्थान, एनएच-4 फरीदाबाद में संपर्क कर सकता है. इसी तरह बीज गुणवत्ता की जांच भी करवाई जा सकती है.
बीज न बदलने से घट जाती है उत्पादकता
पशुपालकों के लिए ये मशीन है वरदान
एक बड़े औद्योगिक घराने ने बिना खेत ताजा हरा पौष्टिक पशु आहार बनाने की मशीन बनाई है. इस हाइड्रोपोनिक्स मशीन से 7-8 दिन में पशुओं के लिए चारा तैयार हो सकता है. दावा किया जा रहा है कि इसमें साधारण हरे चारे की तुलना में तीन गुना प्रोटीन होता है जो दूध उत्पादन में वृद्दि करता है. इसमें पेस्टीसाइड और खरपतवार रहित हरा चारा मिलता है.
कृषि उत्पादों का रख-रखाव
इस समय देश भर में कोल्ड स्टोरेज की क्षमता 32 मिलियन टन की है. कोल्ड स्टोरेज के साथ-साथ रिफर वैन की संख्या जरूरत के हिसाब से काफी कम है. 60 हजार रिफर वैन की जगह सिर्फ 10 हजार ही हैं. रिफर वैन का मतलब कोल्ड स्टोर से सामान दूसरे जगह भेजने के लिए ट्रासंपोर्ट की. यह बढ़ेगा तब किसानों की आय बढ़ेगी.
खेत न हो तो मशीन में भी हरा चारा उगा सकते हैं
कंपनियों के लिए बड़ा बाजार
2018-19 के लिए 58,080 करोड़ रुपये कृषि बजट है. यह उस रकम से अलग है जिसे किसानों को कर्ज के रूप में देने का प्रस्ताव है. केंद्र ने 2018-19 में 11 लाख करोड़ रुपये का कृषि कर्ज देने का प्रस्ताव रखा है.
कृषि पर एक साल में खर्च होने वाली इतनी रकम को देखते हुए अब कई बड़ी कंपनियों की नजर इस मार्केट में घुसने पर लगी हुई है. हमने पिछले दिनों पूसा के कृषि मेले में देखा कि होंडा जैसी वाहन बनाने वाली कंपनियों ने भी कृषि से संबंधित औजार उतारने शुरू कर दिए हैं.